
भारत की धरती पर अगर किसी संस्था ने धार्मिकता, शिक्षा और संस्कृति को एक साथ पिरोने का काम किया है, तो वह है गीता प्रेस गोरखपुर। वर्ष 1923 में सेठ जयदयाल गोयनका द्वारा स्थापित यह संस्था आज केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में हिंदू धर्मग्रंथों और बच्चों के साहित्य के लिए प्रसिद्ध है।
गीता प्रेस की नींव: एक कमरे से शुरू होकर दो लाख वर्ग मीटर तक का सफर
1923 में गोरखपुर के उर्दू बाजार स्थित एक किराए के कमरे से शुरू हुई यह यात्रा आज 2 लाख वर्ग मीटर में फैले विशाल परिसर में तब्दील हो चुकी है। गीता प्रेस को संचालित करने वाला गोविंद भवन ट्रस्ट की स्थापना जयदयाल गोयनका ने 1921 में कोलकाता में की थी। यही ट्रस्ट बाद में गीता प्रेस के संचालन का केंद्र बना।
100 करोड़ से अधिक किताबों का प्रकाशन
गीता प्रेस ने 15 भाषाओं में 100 करोड़ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित की हैं। श्रीमद्भागवत गीता, श्रीरामचरितमानस, महाभारत, वाल्मीकि रामायण, पुराण—ये सभी कालजयी ग्रंथ यहां शुद्ध और सरल भाषा में प्रकाशित होते हैं।
मासिक पत्रिका “कल्याण” की ऐतिहासिक भूमिका
1950 से प्रकाशित हो रही मासिक पत्रिका “कल्याण” भारत के आध्यात्मिक साहित्य का स्तंभ है। अब तक इसकी 17 करोड़ से अधिक प्रतियां प्रकाशित हो चुकी हैं, जो इसकी लोकप्रियता को दर्शाती हैं।
बच्चों को संस्कार और भाषा सिखाने की पहल
गीता प्रेस ने बच्चों के लिए भी बहुत सुंदर पुस्तकों का प्रकाशन किया है। 11 करोड़ से अधिक बाल साहित्य की किताबें, जिनमें हिंदी वर्णमाला, शिशु पाठ, बालक के गुण, पिता की सीख जैसी रंगीन सचित्र पुस्तकें शामिल हैं। इनकी कीमत केवल ₹35 होती है, जबकि मार्केट में ऐसी किताबें ₹150–200 तक बिकती हैं।
रंगीन चित्रों से सजी शिक्षाप्रद कहानियां
बालकों को आकर्षित करने और संस्कारित करने के लिए गीता प्रेस चित्रयुक्त कहानियां प्रकाशित करता है। इनमें भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण की लीलाएं, संतों और महापुरुषों की प्रेरक कथाएं सम्मिलित हैं।
राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद का ऐतिहासिक दौरा
29 अप्रैल 1955 को भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद गीता प्रेस आए और उन्होंने लीला चित्र मंदिर के मुख्य द्वार का लोकार्पण किया। यह आज भी यहां आने वाले हर श्रद्धालु को आध्यात्मिक अनुभूति कराता है।
विश्वभर में गीता प्रेस का प्रभाव
गीता प्रेस की पुस्तकें विश्व के हर कोने में पढ़ी जाती हैं। यह न केवल धार्मिक ज्ञान का प्रचार-प्रसार कर रहा है, बल्कि आपदा की घड़ी में समाज सेवा में भी अग्रणी रहा है।
गीता प्रेस सिर्फ एक प्रकाशन संस्था नहीं है, यह एक संस्कृति आंदोलन है। धार्मिक पुस्तकों से लेकर बच्चों के साहित्य तक, यह संस्था भारतीय समाज की आध्यात्मिक, नैतिक और शैक्षिक उन्नति में सदी भर से योगदान दे रही है।